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फिसलती जाए रेत रे |

एक सोसाइटी के पदाधिकारियों के चुनाव के दौर का एक वृतांत है | यह एक साधारण रेजिडेंशियल सोसाइटी के पदाधिकारियों के चयन का चुनाव था | इस चुनाव में ना तो बहुत कुछ पाने को था और न ही खोने को | लेकिन फिर भी प्रत्याशी और उनकी  टीम के सदस्य भावनाओं और जज्बे से ओतप्रोत थे | सभी प्रत्याशी पुरजोर अपनी सोच को, विचारों को सबके सामने बेहतर से बेहतर तरीके से प्रस्तुत करने की कोशिश  कर रहे थे | सभी प्रत्याशी मतदाताओं को स्वयं के पक्ष में आकर्षित करने की भरपूर कोशिश कर रहे थे | लगभग एक- दो महीने की प्रयासों के बाद कोई भी अपनी मेहनत को जाया होते हुए नहीं देखना चाहता था | रेखांकित करने वाली बात यह है कि कोई भी अपनी मेहनत को जाया होते हुए नहीं देखना चाहता था| सभी परिणाम स्वयं के पक्ष में चाहते थे | कुछ प्रत्याशियों की हालत यह थी कि यदि किसी न किसी वजह से वो चुनाव हार गए तो वो एक अवांछित मनोदशा में पहुँच जाएंगे!  किसी परिणाम से, प्राप्ति से, इच्छा से जो इतना गहरा लगाव है वो हमारी वेल बीइंग के लिए, हमारी खुशियों के लिए एक बड़े ही खतरे का संकेत है |

जीवन में एक नियम है कि जितना रेत को मुट्ठी में कसके रखने की कोशिश करेंगे, उतनी ही वो ऊँगली के बीच से फिसल के निकलती चली जायेगी | बेहतर ये होगा की हम रेत को हाथ में तो लेवें लेकिन सिर्फ इसके मूवमेंट को, उसकी गति को एन्जॉय करें न कि इसे कसके रखने की कोशिश करें| अर्थार्थ,  चुनाव लड़ना कोई गलत बात नहीं है, आप अपनी ऊर्जा का उपयोग जहाँ भी करें आप करने के लिए स्वतंत्र है | आपने यह सोच समझ के किया होगा, उसका आपके लिए कोई लक्ष्य होगा, लेकिन बस उस परिणाम की प्राप्ति होने या न होने का प्रभाव आपकी वेल बीइंग पर न पड़े, यह एक अच्छी  अवस्था नहीं है | हमें उस परिणाम को सिर्फ होते हुए देखना चाहिए और स्वीकार करना चाहिये | हमें पहले से ही ये मानके चलना चाहिए की परिणाम कुछ भी हो सकता है क्योंकि यदि आप उसे स्वीकार नहीं करेंगे तो इसके संयोग अत्यधिक है कि दूसरी नकारात्मक ऊर्जाएं जैसे ईर्ष्या, घृणा, डिप्रेशन आप में अत्यधिक प्रभावशाली होती चली जाएंगी और यदि ऐसा है तो तो आप एक ऐसे जीवन को व्यर्थ कर रहे होंगे जो एक बहुत बेहतरीन समय देख सकता था |

‘ फिसलती जाए रेत् ‘ का मतलब यही है कि चाहे हम उम्र के किसी भी पड़ाव या परिस्तिथियों में हों, हमें परिणाम से आसक्ति, अटैचमेंट नहीं रखना चाहिए | जैसे की, यदि हम टीनएज है तो हमारे सामने बहुत से लक्ष्य या परिस्तिथियाँ हो सकते हैं; जैसे की स्कूल टॉप करना, बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड का धोका देके चले जाना और या फिर यदि आपने कॉलेज कर लिया है तो आपको मनचाहे जॉब का कंसर्न हो सकता | जीवन गतिशील है, जीवन में स्थायी कुछ भी नहीं है | जो लोग जीवन के पड़ाव को , परिणाम को स्थायी समझ लेते है तो यह स्तिथि उनके साथ ऐसी ही होगी जैसे की रेत को मुठी में बाँध के रखने की कोशिश | जो विचार आपके कॉलेज में होंगे वैसे विचार पहली जॉब ज्वाइन करते वक्त नहीं होंगे और जैसे विचार आपके पहली बार जॉब ज्वाइन करते वक़्त होगें वो दस साल बाद नहीं होंगे | जैसे-जैसे आपके अनुभव बदलते रहेंगे आपके विचार बदलते रहेंगे और जैसे-जैसे आपके  विचार बदलते रहेंगे वैसे-वैसे जीवन के प्रति आपका नजरिया बदलता रहेगा | पर इस जीवन यात्रा में आपको सिर्फ एक बात ध्यान रखनी है वो यह है की जीवन का मूल उद्देश्य आनंद है और जो वास्तविक आनंद है वो जीवन में घटती हुई घटनाओं को देखते रहने से है न कि उनसे आसक्त होने से | इस विचार को आप अपने मस्तिष्क से निकाल दें की आप बहुत कुछ कर सकते हैं | इतनी बड़ी सृष्टि में आप एक नादान प्राणी है, आप कोशिश करतें है जैसे की हर प्राणी करता है | हर प्राणी अपने विचार से अपनी जरूरतों की पूर्ती करने का प्रयास करता है, ठीक उसी प्रकार मनुष्य भी कोशिश करते हैं | सब कुछ प्राणियों के हाथ में नहीं है | जैसे शेर हिरन का शिकार करने का प्रयास करता है , हिरण कभी शेर के हाथ लगता है और कभी नहीं भी लगता है | हर परिणाम को स्वीकार करना होता है | यदि आप ऐसा नहीं करते है तो आप दुनिया के साथ सम्बन्ध तो छोड़िये आप अपने आप के साथ भी सम्बन्ध स्थापित नहीं कर पाते है | और यदि आपका सम्बन्ध अपने आप से ही अच्छा नहीं है तो आप अपने  ही खोल में, अपने ही शरीर के अंदर अपने आप के साथ सहज भाव से नहीं रह पाएंगे और फिर इस बात की कल्पना करना की आप इस सृष्टि में फैले आनंद का अनुभव कर पाएंगे असंभव है | बुद्ध ने एक शब्द कहा है ‘अहो’ भाव | अहो भाव का अर्थ ही है जो हो रहा जीवन में उसकी स्वीकार्यता हो | अहो, स्वीकार्यता का भाव एक सफल और सुखद जीवन कि कुंजी है |

जो लोग अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्रयास कर रहे है, वो चाहे रिलेशनशिप हो या प्रोफेशनल अचीवमेंट्स, हर केस के अंदर परिणाम से अटैचमेंट बहुत खतरनाक है | ये मानके ही चलना चाहिये कि उस उद्देश्य की पूर्ती के दोनों ही आयाम, परिणाम संभव है | हम सफलता की दिशा में प्रयास कर रहे है लेकिन सुखद परिणाम का मिलना और न मिलना दोनों संभव है और यदि सुखद परिणाम के न मिलने को आपने सहज भाव से स्वीकार कर रखा है तो आप देखेंगे की उस उदेशय की प्राप्ति के दौरान आप सहज भाव से रहेंगे और एक सहज भाव से किय कार्य का अच्छे परिणाम दिलाने में ज्यादा सहायक होता है बजाय किसी दबाव में किये हुए काम के | हमने देखा है कि लोग जिन गतिविधियों में इच्छुक         रहते है वो उसको बिना परिणाम की चिंता किये हुए अच्छे तरीके से परफॉर्म करते है | आपने कई बार टीवी पर प्रोग्राम के दौरान देखा है कि जज किसी प्रतिभागी को यह बोलते हैं कि आपने अपनी परफॉरमेंस को एन्जॉय किया | तो यदि आप परिणाम कि चिंता किये बिना परफॉरमेंस को एन्जॉय करते है तो आप परिणाम के अधिक निकट पहुंचेगे | यदि आप वाकई में किसी परिणाम को जीतना चाहते है तो आप हार के डर  से मुक्त हो जाइए | जब तक आप किसी कार्य करना का आनंद नहीं ले पाएंगे आपका हारना तय है | जितने लोग जीवन में बड़े स्तर पर जीततें हैं सब लोग कार्य की प्रक्रिया का आनंद ले रहे होते है | हार और जीत सिर्फ जज लोगों की शब्दावली है | इनफैक्ट हर वो व्यक्ति जिसने कार्य सम्पूर्ण करने की प्रक्रिया का आंनद उठाया है वो विजेता है | असली जीत आनंद है, न की स्कोर बोर्ड है | लाइफ को स्कोर बोर्ड न बनाये | लाइफ में अलग रंगों की घटनाएं घटती रहती है और घटना का अनुभव ही वास्तविक आनंद है |

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