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जो व्यक्ति महिलाओं का सम्मान नहीं कर सकता वो महान कलाकार नहीं बन सकता है – पद्मश्री अर्जुन प्रजापति

कलाकृति  मिट्टी से आकार तक की यात्रा है | प्रकृति में कुछ बिखरे हुए औज़ार और साधन ,जिन पर  एक कलाकार की नजर पड़ती है और एक सजीव  कलाकृति का निर्माण हो जाता है | ऐसी ही अनेक कलाकृतियों  के निर्माता विश्विख्यात मूर्तिकार पद्मश्री अर्जुन प्रजापति, जो अपनी नायब कला का लोहा विश्व भर में मनवा चुके हैं से जवाहर कला केंद्र में उनकी कला की प्रदर्शनी में रूबरू होने का मौका मिला | अर्जुन प्रजापति जयपुर के एक स्थापित कलाकार है जो विभिन्न तरह के मीडिया का उपयोग करते हुए उत्तम रचनाओं को आकार  देने में सिद्धहस्त हैं | जानिये ! जयपुर अफेयर्स  द्वारा पूछे हुए  प्रश्नो का जवाब अर्जुन प्रजापति ने किस तरह दिया |

 

१. जयपुर अफेयर्स के लिए आपके व्यस्तम कार्यक्रम में से समय निकालने लिए बहुत बहुत धन्यवाद | सबसे पहले आप हमारे पाठको को बताएं कि कला के क्षेत्र में आने की प्रेरणा आपको कहाँ से मिली?

आपका बहुत धन्यवाद | मूर्ती कला से मेरा जुड़ाव बचपन में ही हो गया था | जब हम ख़ज़ानों वाले के रास्ते पर रहते थे और स्कूल जाते थे तो रास्ते में मूर्तिवालों का मोहल्ला आता था | मैं  वहां घंटो बैठकर मूर्तियों के निर्माण को होते हुए निहारता था | धीरे धीरे मूर्तिकला का मेरे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ने लगा और कालांतर में मैंने इसके लिए अपने जीवन समर्पित करने का फैसला कर लिया | तो यदि प्रेरणा की बात करें तो बचपन में ही इसकी अमिट छाप मेरे जहन पर पड़ चुकी थी |

 

२. कला के अनेक स्थापित माध्यम है, आपने मूर्तिकला को ही क्यों चुना?

जैसे की मैंने आपको अभी बताया की मेरा परिचय मूर्तिकला से ही सर्वप्रथम हुआ और बचपन में ही मैं इस कला से इस तरह बंध गया कि अपने आपको व्यक्त करने के लिए मैं इस कला को सहज रूप से अपनाने लगा | मैं इस कला में क्ले, फाइबर, मार्बल, मेटल इत्यादि का प्रयोग करता हूँ | मिट्टी तथा फाइबर आसानी से उपलब्ध होने के कारण इसका प्रयोग सहज रूप से किया जाता है |


३. आपकी ज्यातातर कलाकृतियां महान व्यक्तियों पर केंद्रित है, क्या इसका कोई ख़ास कारण हैं?

ये सच है की मैंने ललगभग हर भारतीय और विदेशी महान हस्तियों की मूर्ती बनाई हैं लेकिन मेरे कार्य के और आयाम भी बहुत है जैसे कृष्ण, अर्जुन की बनी ठनी, घोडा, गाय, शेर, श्वान, चूहा, सारंगी बाबा, क्रोधित ग्रामीण, राजस्थानी थीम, पगड़ी पहने राजस्थानी बुजुर्ग इत्यादि को मैंने  मूर्तियों  के रूप में उकेरा हैं |

 

४. इस प्रदर्शनी को आयोजित करने का कोई विशेष कारण?

जी हां | एक बार मुझे अपने पोते के साथ भारत की संसद में जाने का अवसर मिला | वहां प्रसिद्ध कलाकार श्री राम सुथार द्वारा निर्मित महान राष्ट्र निर्मातों की मूर्तिया लगी हुई है | मेरा पोता मुझसे उन सभी के बारे में जिज्ञासावश पूछ रहा था तो मुझे लगा की आज की पीढ़ी की जानकारी के लिए मुझे भी अपनी कलाकृतियों की एक प्रदर्शनी आयोजित करनी चाहिए जो की उनके लिए एक बेहतरीन जानकारी तथा कला से जुड़ने का अवसर प्रदान कर सकती है |

 

५.  जब आप किसी व्यक्तित्व को मूर्ती में ढालने के बारे में तय करते है तो क्या आप केवल उनकी बाहरी आवरण को पढ़ते है या उनके व्यक्तित्व के दुसरे आयाम जैसे कि विचारों को जांचना भी आवश्यक है?

देखिये! मूर्तिकला अपने आप में एक रिसर्च सेण्टर है | मैंने लगभग हर निपुण व्यक्ति जैसे की बिल क्लिंटन, अमिताभ बच्चन इत्यादि की मूर्ती बनायी है और मैं अपने अनुभव से बता सकता हूँ की मूर्ती बनाने से पहले न की केवल उस व्यक्ति का चेहरा किन्तु उसका कार्य क्षेत्र, मुद्दों पर उनके विचार, जीवन के प्रति उनकी सोच, भाव भंगिमाएं इत्यादि भी नियर टू परफेक्ट कृति बनने में सहायक है | मूर्तिकला के कार्य से जुड़ने के कारण अब फेस रीडिंग में भी निपुणता हासिल हो चुकी हैं |


५. क्या आप हमारे पाठको को बताना चाहेंगे की ऐसी उत्तम कलाकृतियों के निर्माण के लिए किन संसाधनों को होना आवश्यक है?

मुख्य रूप से इसके लिए सिर्फ एक साधन की आवश्यकता होती और वो है तपस्या, लगन | मूर्ती कला आपको एक बेहतरीन एनाटोमी (शरीर रचना) एक्सपर्ट के रूप में विकसित कर देती है | यदि आप पिक्चर परफेक्ट मूर्ती का निर्माण करना चाहते हैं तो आपके अंदर की शक्ति आपको वहां तक पहुंचा सकती है | यदि आप मेटेरियल की बात करें तो सभी कुछ बाजार में सुलभता से मौजूद है |

 

६. पद्मश्री प्राप्त करने से पहले और बाद के जीवन में आप क्या फर्क पाते हैं?

जी मैं पहले भी काम करता था और अभी भी वही काम करता हूँ | एक कलाकार के जीवन में अवार्ड पहचान दिलाने में सहायक होता है लेकिन उसे वास्तविक आनंद कला में ही मिलता है | कर्ता उस्ताद होता है | जीवन चलने का नाम है |

 

 

७. अंतिम प्रश्न-  भगवान् राम ने पत्थर की शीला को छुआ और वो जीवंत हो गयी , आप भी कलाकृतियों में लगभग जान फूंक देते है | क्या कोई ऐसा काल्पनिक व्यक्तित्त्व अभी बाकी है  जिसे आप अपनी कला के माध्यम से जीवित कर देना चाहते  है |

देखिये ! भगवान् राम अतुलनीय है और इससे उनकी तुलना सही नहीं है | मैं सिर्फ एक माध्यम के तौर पर कार्य करता हूँ | जब भी आप कला में गहरे उतरते है तो निश्चित  तौर पर दिव्य ऊर्जाओं का संचार होता है |

 

और आपके अंतिम प्रश्न पर मैं अंतिम बात यह कहना चाहता हूँ एक महान कलाकार के जहन में महिलाओं के प्रति सम्मान ही उसको ऊंचाइयों तक पहुंचाता हैं | आप यदि महान कलाकारों की कृतियों को देखें तो पाएंगे की उनकी सबसे प्रसिद्ध कलाकृति में किसी न किसी महिला की कृति अवश्य रूप से होगी |

जो व्यक्ति महिलाओं का सम्मान नहीं कर सकता  वो महान कलाकार नहीं बन सकता है |

 

 

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